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रविवार, 23 मई 2010

ajnabi

तुम्हें याद है ना मेरी

आरज़ुओं को आदत थी

तुम्हारे फलक के

रंगीन सितारे तकने की,

इन दिनों ये मुरझाईं-सी हैं ...



यूँ करो एक रोज़

अपना फलक एक

डिबिया में रख के

भेज दो ना.....

हवा से माँगता नहीं हैं

दिल साँस की एक

भी लहर क्यूँकि

अब हवाओं के दिल

में इश्क नहीं,

धडकनों में ना

घुट के मर जाये

तेरी चाहत की

नब्ज़ का जरिया...

हवा का एक

पुर-इश्क क़तरा

अपनी मुट्ठी में

बाँध कर फेंको...



नज़र पाँवों की

धुँधलाई पड़ी है

थकन के खूब सारे

अश्कों से, चलते

हैं ना देख पाते हैं,

वो वादा हमकदम

हो जाने का वो

वादा आज फिर से

भेजो ना इन्हें रस्ता

दिखे चलने लगे ये

कानों को बहुत

शिकायत है ना

आवाज़ लाती हूँ

तुम्हारी ना ही

परोसती हूँ वो हँसी

जिनकी आदत-सी

पड़ी गयी थी इन्हें ...

हँसी की आज

नन्ही बूँद कोई लबों

पे रख के इधर भेजो ना



तुम्हारे मस का स्वाद

हाथों को एक मुद्दत हुई,

नहीं आया तो अब

हर शय का लम्स

हाथों को बहुत

बेस्वाद सा लगने लगा है ..

एक एहसास तुम

अपनी छुवन का

अपनी खुशबु में

भर के भेजो ना ...



बहुत मुश्किल है ना

मुझको ये सब भेजना,

तो यूँ करती हूँ मैं

बादल की एक बोरी

में आरजू, दिल, कान,

पाँव अपने हाथ

के साथ बाँध देती हूँ

रेशमी लहरों के इक

धागे से और भेज

देती हूँ तुमको ..



बादल खोल के मेरी

आरजुएँ देखना तुम

उन्हें रखना शब

भर अपने फलक

पर तुम्हारे तारों का

उनको ज़रा तो

साथ मिले ..



तुम अपनी छत पे

खुली-सी हवा में

जहाँ पे इश्क

मौसम हो मेरे

दिल को टाँग

देना बस, कि दम

भर साँस ले

चाहत तेरी रखे जिंदा ..



एक वो हमकदम

होने का वादा

मेरे पाँवो को ऐसे दे

देना जैसे पोंछी हो

तुम ने आँखें भी

और वो देख पायें

रास्ते भी , चाहे

ये थोड़ी देर ही क्यूँ हो..



मेरे कानों को

रखना जेब में

तुम कि तुम

किसी से भी हम-

सुखन होगे इनके

पेट को भरते रहोगे ..

हाथ को रखना तुम

हथेली पर ही

अपनी तुम्हारे

मस की खुशबू

जब तलक भर

जाये ना इनमे ...



मगर तुम अजनबी

हो अब मुझसे

तो क्या इक

अजनबी के लिए

तुम इतना सब

कुछ कर भी पाओगे?

----ritu saroha "aanch"-----



http://kavita.hindyugm.com/2010/05/ajnabi.html

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

"यूँ करो एक रोज़
अपना फलक एक
डिबिया में रख के
भेज दो ना....."
अद्भुत सोच - अकल्पनीय भावों और नायाब शब्दों से सजी लाजवाब रचना

बेनामी ने कहा…

bahut khunsurat aur pyaari ri rachna....
achha laga padhkar....

दिलीप ने कहा…

waah badi hi lajawaab rachna...bhaavon se bhari...

Avinash Chandra ने कहा…

नज़र पाँवों की

धुँधलाई पड़ी है

थकन के खूब सारे

अश्कों से.......aage na kahun to behtar :)
shukriya aisa likh sakne ka

aanch ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.