zindggi
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गुरुवार, 17 जून 2010
nazm
बादल की
अठखेलियों से
टिमटिमाती शाम
तुम बिछा दो
जो रुमाल काला
खेल
खत्म
हो जाए....
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आवाज़ की रातो
तले दबी
बुदबुदाती आँखों से
मैं ख़ामोशी चुरा
लायी हूँ.....
तुम कहो तो
दो रोज़ को
जुबां पे रख लूँ....
----आंच---
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