मेरा ही कोई
ख्वाब था शायद.,
"छत
किसी काई भरे
तालाब की तरह
पिघली-सी थी,
पंखा तैरता था
कभी डूबता था...
ख़्वाब टूटा तो
आँख
स्याह पानी से भरी थी,
मुस्कुराहट तैरती थी
तो कभी डूब जाती थी....
उफ़ ..!
ज़िन्दगी ख्वाबों में और
ख्वाब आँखों में घुल गए हैं.....
---aanch---
http://kavita.hindyugm.com/2010/06/khwab.html